गोस्वामी तुलसीदास: जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान!
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महानतम स्तंभ, भक्तिकाल के शीर्षस्थ कवि और 'रामचरितमानस' जैसे महाकाव्य के रचयिता हैं।
इनके जन्मस्थान और जन्मवर्ष को लेकर विद्वानों में मतभेद है, लेकिन प्रचलित मान्यता के अनुसार इनका जन्म संवत 1589 (सन् 1532 ई.) में श्रावण मास की शुक्ल सप्तमी के दिन राजापुर (वर्तमान बाँदा जिला, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान सोरों (चित्रकूट) भी मानते हैं।
जन्म के समय शनि की दशा के कारण अशुभ मुहूर्त में जन्म लेने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। इन्हें चुनिया नामक दासी ने पाला, जिनकी मृत्यु के बाद तुलसीदास ने बचपन से ही भिक्षाटन शुरू कर दिया।
बाद में नरहरिदास (सुखार स्थान के संत) ने इन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया और अयोध्या ले गए, जहाँ इन्हें रामभक्ति की दीक्षा मिली।
शिक्षा एवं गृहस्थ जीवन
तुलसीदास ने पाँच वर्ष की आयु में ही गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। इन्होंने संस्कृत, वेद, उपनिषद, दर्शन आदि का गहन अध्ययन किया।
किशोरावस्था में ये रत्नावली नामक कन्या से विवाह के बंधन में बँधे और पत्नी से अत्यधिक स्नेह के कारण गृहस्थ जीवन में डूबे रहे। कहा जाता है कि एक दिन पत्नी के ताने ने इनके जीवन की दिशा ही बदल दी और ये संन्यासी बन गए।
संन्यास एवं भक्ति भावना
पत्नी के कटाक्ष ("मेरे शरीर से अधिक स्नेह यदि तुम श्रीराम से करते तो तुम्हारा उद्धार हो जाता") ने तुलसीदास को गहराई से प्रभावित किया और वे गृहस्थ जीवन का त्याग कर संन्यासी बन गए।
इन्होंने अयोध्या, चित्रकूट, काशी, हरिद्वार आदि तीर्थस्थलों की यात्रा की और रामभक्ति में लीन हो गए। कहा जाता है कि चित्रकूट में इन्हें भगवान राम व हनुमान जी के दर्शन भी प्राप्त हुए।
साहित्यिक रचनाएँ
तुलसीदास ने अवधी और ब्रज भाषा में कई महान ग्रंथों की रचना की:
प्रमुख कृतियाँ:
- रामचरितमानस (अवधी): यह तुलसीदास का सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसमें भगवान राम के चरित्र का वर्णन है। इसे 'तुलसी रामायण' या 'रामायण' भी कहा जाता है।
- विनय पत्रिका (ब्रज भाषा): भक्ति भाव से ओत-प्रोत स्तुतियों का संग्रह।
- कवितावली (ब्रज भाषा): रामचरित से संबंधित कविताओं का संग्रह।
- गीतावली (ब्रज भाषा): रामकथा पर आधारित गीत।
- दोहावली (ब्रज भाषा): नीति और भक्ति के दोहे।
- हनुमान चालीसा: हनुमान जी की स्तुति में लिखा गया अत्यंत लोकप्रिय स्तोत्र।
दार्शनिक दृष्टिकोण
तुलसीदास ने रामभक्ति के माध्यम से जनसाधारण तक आध्यात्मिक संदेश पहुँचाया। उनका साहित्य सगुण भक्ति धारा का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श राजा के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का अद्भुत समन्वय मिलता है।
मृत्यु एवं विरासत
मान्यता है कि तुलसीदास का संवत 1680 (सन् 1623 ई.) में काशी (वाराणसी) में असी घाट पर निधन हुआ। उनकी समाधि आज भी संत तुलसी घाट पर विद्यमान है।
तुलसीदास का साहित्य हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। रामचरितमानस न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक दस्तावेज भी है जिसने भारतीय जनमानस को सदियों तक प्रभावित किया है।
उनकी रचनाएँ आज भी लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था, नैतिकता और सांस्कृतिक पहचान का आधार हैं।
तुलसीदास ने साहित्य के माध्यम से लोकमंगल का मार्ग प्रशस्त किया और सामान्य जन तक धर्म एवं दर्शन को सरल, सहज भाषा में पहुँचाकर एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। वे सच्चे अर्थों में 'लोकनायक' और 'कलिकाल के विभूति' थे।
-01.jpeg)